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नदियां और झीलें

यमुना

यह नदी हिमालय के यमनोत्री पर्वत से समुद्र तल से लगभग 7, 924 मीटर की ऊंचाई पर से निकलती है। गढ़वाल के मध्य भाग को पार करते हुए जौनसार क्षेत्र को सिंचित करते हुए लगभग 22 किलोमीटर की दूरी तय करने के उपरान्त जिले की पूर्वी सीमा पर बहती है। गांव खोदरी माजरी में प्रवेश करना और कौंच नामक स्थान से अलग हो कर बहती है, यह क्यारदादून को देहरादून से अलग करती है और इस प्रकार यह जिला सिरमौर और उत्तराखंड के बीच की सीमा रेखा बनती है। सिरमौर जिले के भीतर नदी की अनुमानित अधिकतम चौड़ाई 90 मीटर और गहराई 6 मीटर है, लेकिन यह सीमा बरसात के मौसम में काफी अधिक हो जाती है। गर्मियों में, पहाड़ों पर बर्फ की पिघलने के कारण, नदी के पानी की मात्रा अक्सर घटती-बढती रहती है, जिसके लिए नहर विभाग ने पानी की माप लेने के लिए उपकरणों सहित टेलिफोन की सुविधाओं युक्त सूचना देने के लिए दादूपुर में एक कार्यालय स्थापित किया हुआ है। इस नदी का पानी आमतौर पर ठंडा और पारदर्शी होता है, लेकिन गर्मियों के दौरान बर्फ पिघलने के कारण यह कुछ गंदा भी हो जाता है। यह एक पवित्र नदी है जो अपने किनारों मे रामपुर का मंदिर और पॉँवटा साहिब का गुरुद्वारा लिए हुए है। चूंकि यह नदी क्यारदादून के पठार के निचले स्तर पर बहती है, इसलिए इस क्षेत्र को सिंचाई के लिए इसके पानी का उपयोग नहीं किया जा सकता। टोंस और गिरि नदियों के माध्यम से पहाड़ों से आने वाली लकड़ी की रामपुर घाट में पकड़ी जाती है और मैदानों में तैरते हुए नीचे तक पहुँचती है। लेकिन अब लकड़ी की निकासी नदी से नहीं होती है बल्कि मोटर वाहन (ट्रकों) से होती है।
जिले में जो उल्लेखनीय सहायक नदियां हैं, उनमे से टोंस का संगम खोदरी माजरी में, गिरि का रामपुर घाट के पास और बाता नदी बाता मंडी में इसमें शामिल होती है।

गिरि

गिरी और इसकी सहायक नदियाँ जिले के अधिक से अधिक हिस्से से जल निष्कासित करती हैं । यह कोट-खाई और ततेश, जो कि शिमला जिले के कुछ हिस्से हैं, के माध्यम से जुब्बल और समीप की पहाड़ियों में अपनी वृद्धि लाती है, और दक्षिण-पश्चिम की तरफ से जिले में प्रवेश करती है। शिमला जिले के क्योंथल क्षेत्र के साथ सीमा बनाकर लगभग 40 किलोमीटर के लिए यह अपना मार्ग जारी रखती है। रामपुर घाट में यमुना में मंडपलासा गांव में, यह जिला सिरमौर के रामपुर घाट के पास यमुना में समा जाती है। यहां से गिरी नहर का निर्माण किया गया है जो मोहकमपुर-नवादा के पास इस नदी से निकाली गयी है। श्यामपुर में इस नदी पर एक नौका विहार है। मछली की एक विशेष किस्म पाई जाती है जिसे महासीर कहा जाता है। काफी मात्रा में इमारती लकड़ी, इस नदी से यमुना में लायी जाती है और कुछ स्थानों पर सिंचाई भी की जाती है।
इसके किनारों पर जलाल को छोड़कर इसकी कोई भी सहायक नदियां महत्वपूर्ण नहीं हैं, जो सैनधार के दक्षिणी-पूर्वी छोर पर सती बाग के नीचे दादाहू के पास इसमें मिलती हैं। अपने बाएं किनारे पर मुख्य धाराएं नैत और पालर हैं, जो कवाल नामक स्थान से निकल कर पहले पश्चिम की ओर बहती है, जब तक यह गिरि में नहीं गिरती है। इसकी सहायक नदियां हैं बाघथी, प्रावी, खाल और जोग्गर।

टोंस

इस नदी का स्रोत यमनोत्री पहाड़ों में स्थित है और जुब्बल और जौनसार के प्रदेशों के माध्यम से प्रवेश करने के बाद कोट गांव के आस पास जौनसार क्षेत्र से जुड़ जाती है, जो कि पहले सिरमौर रियासत का ही हिस्सा था। लगभग 50 किमी के लिए बहने के बाद और जिले की पूर्वी सीमा बनाने के बाद खोदरी माजरी में यमुना में इसका संगम होता है। जब यह लगभग 3,8 97 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ से लकदक अपने उद्गम से निकलती है समुद्र तल से 9 मीटर चौड़े और 9 मीटर गहराई से बहते हुए संगम पर एक भव्य दृश्य बनाती है। नदी के अपने महत्व को समझते हुए टौंस तुलनात्मक रूप से अपने सौन्दर्यमयी जलराशि को समेटते हुए तीव्र वेग से चट्टानों से होकर गुजरती है।

जलाल

यह छोटी, उथली और संकीर्ण नदी तहसील में पच्छाद में पाल खड्ड में नेही के नीचे बणी गांव के पास से आगे बढ़ती है और सैनधार और धारटीधार के बीच एक विभाजन रेखा बनाती है। उप तहसील में दादाहू में यह गिरी नदी में गिर जाती है, यहां पर इसका नाम खो जाता है यह आसानी से पार करने योग्य हो जाती है, हाँ; जब इसमें बरसात में जलस्तर (बाढ़) बड़ जाता है तो इसका उफान देखने योग्य हो जाता है।

मारकंडा

यह कटासन के पहाड़ी इलाकों में बड़ाबन में उगती है और कटासन देवी के मंदिर से नीचे के क्षेत्र से आगे बढती है। जिला सिरमौर मे लगभग 24 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए दक्षिण-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम में बहने के बाद जिले के बजोरा इलाके को सिंचित करते हुए यह कालाअंब मे अंबाला जिले में प्रवेश करती है। इस से पूर्व गांव देवनी में इसका मुहाना काफी चौड़ा है। यह सलानी नामक एक स्रोत नदी से जुड़ा हुआ है। बजोरा, कालाआम्ब के क्षेत्र में शंभूवाला, रुखड़ी, बीर बिक्रमबाग और खादर का बाग इसके सिंचित क्षेत्र हैं और कुछ पानी से कारखानों को भी उपलब्ध कराया जाता है।सलानी नामक नदी इसकी एकमात्र सहायक नदी है।

बाता

यह नदी तहसील नाहन के सिओरी क्षेत्र में बाग्ना गांव से उठती है और मारकंडा से पूर्व दिशा लेकर क्यारदादून को दो भागों में विभाजित करता है | यह बात मंदी में यमुना में विलुप्त होने से पूर्व दून के बड़े इलाके को सींचती है। बरसात मे इसमें बेतहाशा पानी आता है तो यह दुश्तर हो जाती है।