वन्यजीव अभ्यारण्य
इतिहास
रेणुका वन्यजीव अभयारण्य हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है। अभ्यारण्य निकटतम शहर ददाहू से लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर है। अभ्यारण्य रेणुका जी से पूर्णतया सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। अभ्यारण्य का कुल क्षेत्रफल 402.80 हेक्टेयर है। पूरे रेणुका वन्यजीव अभ्यारण्य में केवल रेणुका आरक्षित वन क्षेत्र का समावेश है और इसे “अभ्यारण्य” के रूप में घोषित किया गया है और इस क्षेत्र के उपयोग का किसी को कोई भी अधिकार नहीं दिया गया है। इसके अलावा, अभ्यारण्य के बाहर 300 हेक्टेयर का एक क्षेत्र है लेकिन इसकी सीमा के साथ निकटतम क्षेत्र एक अन्तःरोधी घेरा घोषित किया गया है।
यह क्षेत्र आमतौर पर अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्य से मान्यता प्राप्त है। श्री रेणुका जी क्षेत्र माता रेणुका और उनके पुत्र भगवान परशुराम के मंदिरों के लिए जाना जाता है। पौराणिक कथाओं में यह कहा गया है कि माता रेणुका जी को दुर्गा के अवतार के रूप में ऋषि जमदग्नि की पत्नी के रूप मे अवतरित हुई थी। परशुराम भगवान विष्णु का छठा अवतार माना गया था, जो ऋषि युगल के पांच बेटों में सबसे छोटा था। एक बार अपने पिता के आदेश का पालन करने के लिए, परशुराम को अपनी माँ का वध करना पड़ा, माँ की हत्या के बाद उन्होंने पिता से अपनी माँ को पुनर्जीवित करने का वचन लिया था जिसके लिए ऋषि सहमत हो गए थे। रेणुकाजी बहुत अनिध सुंदर थी सहस्त्रवाहू सम्राट उससे शादी करना चाहता था और एक बार जब परशुराम उनसे कहीं दूर चला गया था, तब उसने रेणुका जी से विवाह करने के लिए ऋषि जमदग्नि और उनके चार पुत्रों को मार डाला । सम्राट के चंगुल से बचने के लिए और अपने पति और चार बेटों की मृत्यु के दुःख को सहन करने में असमर्थ, रेणुकाजी उस समय राम सरोवर नाम से जाने जाने वाले छोटे से तालाब में कूद गई, और उसमें विलुप्त हो गई। उस काल से ही झील की पूजा रेणुका जी झील के रूप में की जाती है।
वनस्पति पशुवर्ग
अभ्यारण्य का क्षेत्र भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) द्वारा वर्गीकरण के अनुसार जैव-भौगोलिक क्षेत्र IV और जैव-भौगोलिक प्रांत IV के अंतर्गत आता है। चैंपियन और सेठ द्वारा वन प्रकार वर्गीकरण के अनुसार, समूह 5 बी / सी 2 के तहत रेणुका वन शुष्क मिश्रित पर्णपाती वन और समूह 5/051 अर्थात शुष्क साल वन। यह क्षेत्र प्राकृतिक साल वन की उत्तरी सीमा का निर्माण करता है।
जो बेडोन धार तक फैला है। एनोजेसस, ल्यूसीना, टर्मिनलिया, खैर, शिशम, कैरी, कॉर्डिया और विभिन्न प्रकार के बेल रुपी वन क्षेत्र है। पक्षियों सहित क्षेत्र के जीवों में तेंदुआ, साम्भर, भौंकने वाले हिरण, चीतल, गीदड़, खरगोश, जंगली बिल्ली, काकड, पाम सिविट, शैल, नीलकंठ पंछी, काला तीतर, कोयल, पहाड़ी कौवा, बतख़, बुलबुल, कबूतर।
मिनी चिड़ियाघर और शेर सफारी
रेणुका जी लघु चिड़ियाघर के रूप में हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराना चिड़ियाघर है। इसे 1957 में शुरू किया गया था, जहाँ वनों से बचाए गये आवारा और निर्जन जंगली जानवर भी शामिल थे। चिड़ियाघर में लाया गया पहला जानवर मोती नामक एक नर हिरण था। उस समय भदारी के लेफ्टिनेंट गवर्नर माननीय राजा राजराम बहादुर की यात्रा के बाद मोती के लिए मादा चीतल का प्रबंध किया गया। इन्होने रेणुका जी चिड़ियाघर की वास्तविक नींव रखी। चिड़ियाघर में संभार, चिंकारा, होगियर, ब्लैक बक आदि जैसे और अधिक जंगली जानवरों को भी रखा जाने लगा। इन सभी जानवरों के प्रजनन को वातावरण देकर इनकी संख्या को बढाया गया। पशुओं की बढ़ती संख्या को समायोजित करने के लिए, एक खुला पार्क का विचार माना गया और 1983 में ओपन पार्क की स्थापना की गई। ब्लैक बक और नीलगाय को पीपल चिड़ियाघर से लाया गया।
मिथून की एक जोड़ी तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी द्वारा हिमाचल के मुख्यमंत्री को भेंट स्वरूप दी गई थी, जिसे सन् 1985 में अरुणाचल प्रदेश से लाया गया था और 1986 के दौरान नागालैंड से लाया गया था। 1975 के दौरान सिंहों की एक जोड़ी जुनागढ़ से रेणुका चिड़ियाघर में लाई गई थी। सिंह का नाम राजा था और शेरनी नाम रानी रखा गया। इसके साथ ही 1998-99 के दौरान एक पक्षीशाला को भी स्थापित किया गया था। इस क्षेत्र में लोगों को माँ रेणुका जी मंदिर में पूजा करने के अधिकार को छोड़कर कोई भी अधिकार प्राप्त नहीं हैं। अवैध रूप से पत्ती काटना और चराई की घटनाओं को रोकने के लिए, पूरे अभ्यारण्य के लिए दो वन रक्षकों को इस क्षेत्र की रक्षा के लिए तैनात किया गया है और एक सहायक परिक्षेत्र अधिकारी को कार्यक्षेत्रों में एक वन परिक्षेत्र अधिकारी के सहायक के रूप मे तैनात किया गया है। अभ्यारण्य की परिधि व आंतरिक श्रृंखला बाड़ से घिरी है ताकि आसपास के गांवों से अभ्यारण्य क्षेत्र मं ग्रामीणों के अवैध प्रवेश को प्रतिबंधित किया जा सके। वर्तमान में सिंह सफारी, चिड़ियाघर, अभयारण्य और अभयारण्य को शिमला वन्यजीव विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत रेणुकाजी वन्यजीव रेंज रेणुका के रूप में प्रबंधित किया जा रहा है।
रहने की सुविधाएं
झील के पास रहने के लिए सबसे अच्छी जगह होटल ‘रेणुका’ पर्यटन विभाग द्वारा संचालित है। इसके अलावा, वन विभाग की एक निरीक्षण कुटीर भी उपलब्ध है। राज्य बिजली बोर्ड द्वारा संचालित एक विश्राम गृह 2 किमी की दूरी पर ददाहू में स्थित है।