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सिरमौर संस्कृति संग्रहालय त्रिलोकपुर (हि०प्र०)
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सिरमौर संस्कृति संग्रहालय मनुष्य सामाजिक प्राणी है विश्व के समस्त जीव धारियों में केवल वही संस्कृति का निर्माण करता है। सांस्कृतिक मानवशास्त्र में उन तरीकों का अध्ययन आता है जिसमें मानव अपनी प्रोंतिक एवं सामाजिक स्थिति का सामना करता है, रस्म रिवाजों को सीखता है और उन्हें एक पुश्त से अगली पुश्त को प्रदान करता है। सिरमौर संस्कृति संग्रहालय की स्थापना 3 अप्रैल 2015 को चैत्र नवरात्रों के दौरान माननीय मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश द्वारा हुई थी श्री महामाया बाला सुंदरी जी मंदिर न्यास द्वारा निर्मित यह संग्रहालय मुख्यतः उत्तरी भारत, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, चंडीगढ़ इत्यादि स्थानों से आने वाले श्रद्धालुओं तथा आंगतुको के लिए सिरमौर जिला के ऐतिहासिक, संस्कृति व पारंपरिक दर्शन हेतु प्रयास मात्र है। इस संग्रहालय का उद्देश्य राज्य तथा मुख्य रूप से जिला स्तरीय महत्व की सभी पूरावस्तुओं का अर्जन, संरक्षण और अध्ययन करने के साथ-साथ इनके माध्यम से ज्ञान का प्रसार करना तथा मनोरंजन करना है। |
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प्रस्तर कला विथि सिरमौर संस्कृति संग्रहालय की प्रथम विथि में विभिन्न खोजी अन्वेषणों द्वारा विशाल मात्रा में पुरातत्व विषयक अवशेष एकत्रित किए गए हैं। जिसमे सातवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के मंदिरों तथा राजबन (सिरमौरी ताल) स्थित प्राचीन महल के अवशेष संग्रहित किए गए है। प्रथम राजा रसालु और उसके वंशजों द्वारा सिरमौर रियासत की राजधानियों को समय-समय पर बदला गया। जिनमें बुढ़िया (लहरीली के समीप हरियाणा में) कालसी (देहरादून के समीप) राजबन, हाटकोटी, रातेश, नेहरी तथा देवथल प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त गातु (भरोग बनेड़ी) पडदूनी (धोलाकुआं), सालवाला, सतीवाला, जंगलाभूड, मीरपुर कोटला आदि स्थानों से मिले मंदिरों के अवशेष भी यहां प्रदर्शित किए गए है। प्रस्तर अवशेषों के साथ-साथ इस दीर्घा में मिट्टी के बर्तन टेराकोटा तथा प्राचीन मध्यकाल आधुनिक काल के दुर्जन सिक्के भी प्रदर्शित किए गए हैं। |
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विज्ञान विथि इस दीर्घा में रखे गए सिरमौर जिला के पारंपरिक लोक वाद्य यंत्र आकर्षण का केंद्र हैं। जिन्हें विभिन्न अवसरों पर विभिन्न सुर तालों के साथ बजाया जाता है। इस दीर्घा में राज महल द्वारा भगवान जगन्नाथ मंदिर को भेंट स्वरूप दिए गए। चांदी के आभूषण, विलक्षण ओंतियों को प्रदर्शित किया गया है। यहां शिलाई क्षेत्र में पहने जाने वाले पारंपरिक परिधान तथा थोड़ा लोकनृत्य परिधान संग्रहित हैं। दैनिक जीवन में उपयोगी प्राचीन सामग्री भी यहां है। लकड़ी, मिट्टी व धातु के पात्र, मंदिर त्रिलोकपुर का प्राचीन गुंबद, स्थानीय पांडुलिपियां, देव पालकी इत्यादि भी इस दीर्घा में प्रदर्शित की गई है। |
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सिरमौर जिला के स्वतन्त्रता सेनानी 1857 की क्रांति से लेकर पूर्ण आजादी तक सिरमौर जिला की अहम भूमिका रही है। यद्यपि भौगोलिक दृष्टि से यह पिछड़ा हुआ क्षेत्र था तथापि इस पहाड़ी क्षेत्र में स्वतंत्रता के तमाम आंदोलनों में विशेषकर पझोता व प्रजामंडल आंदोलनों में बढ़ चड़कर भाग लिया। चाहे अहिंसा का मार्ग हो या असहयोग आंदोलन इस भूमि के ऋषि तुल्य स्वतंत्रता सेनानी अपने प्राणों की आहुति डालने से कभी नही हिचकिचाए महान देशभक्तो के त्याग को स्मरण करना हमारा पावन कर्तव्य है। इसी दिशा में यह दीर्घा ( हमारी महान हस्तियों से ना केवल उनका ऐतिहासिक परिचय करवाएगी। अपितु वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक सिद्ध होगी। इसके अतिरिक्त महान पन शासकों के दुर्लभ छायाचित्र एवं युद्धक हथियार, तलवार, बंदूकें इत्यादि भी प्रदर्शित है, जो आकर्षण का केंद्र हैं। |
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समकालीन कला विथि संग्रहालय की इस दीर्घा में हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, चंबा, कुल्लू, लाहोल इत्यादि जिलों के पारंपरिक परिधान को प्रदर्शित किया गया है। धातु व कास्ट से बने पारंपरिक पाक-पात्र सिंहटू लोक नृत्य में प्रयुक्त किए जाने वाले काष्ठ मुखौटो, चम्बा धातु कला व दोनों ओर से एक समान दिखाई देने वाले चम्बा रुमाल को प्रदर्शित किया गया है। इसके अतिरिक इस दीर्घा में राज परिधान वा कुछ शस्त्र भी प्रदर्शित किए गए हैं जो शासन कालीन सिरमौर की झलक प्रकट करता है। |
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जीवाश्म विधि संग्रहालय के इस दीर्घा हिमालय की बाह्य पर्वत श्रृंखला शिवालिक में पाए जाने वाले 5 लाख से 35 लाख वर्ष पूर्व के अत्यंत दुर्लभ जीवाशम पर्दर्शित किए गए हैं। भारतीया भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के वैज्ञानिको के मार्गदर्शन में खोजे गए मेरुदंड थारी जीवो के जीवाश्म एवं अभूतपूर्व उपलब्धि रही है क्योंकि प्रागैतिहासिक काल के जीवो के यह जीवाश्म परीक्षण, अध्ययन एवं उस समय के पर्यावरण के बारे में जानकारी की और एक महत्वपूर्ण कदम है। शिवालिक पर्वत श्रृंखला बालूं पत्थर, चिकनी मिट्टी और अन्य जलोढ़ निक्षणों से बनी है, जिसका विस्तार लेकर इंडस के नाम से ब्रह्मपुत्र तक माना जाता है। संयोग से सिरमौर जिला कि शिवालिक पर्वत श्रृंखला में यह जीवाश्म सर्वाधिक पाए जाते हैं इन जीवों मे घोड़, कैटल, हाथी, जिराफ, हिप्पोपोटामस, घड़ियाल, लैंड टारटायज, आदि के जीवाश्म पाए जाते हैं।नाहन तहसील के वर्मा पापड़ी, पालीयों, गुमही, डाकरा, खरकों सुकेती, खेती सुकेती, विक्रम बाग, खैर वाला कोलर भेड़ों तथा हरियाणा में मोरनी के समीप सेर-जवेन, बाल्दवाला आदि स्थानों से इन जीवाश्म को एकत्रित किया गया है। गया है। |
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